S.D. Human Development, Research & Training Center | श्रीमद्भगवद्गीता के चतुर्थ अध्याय पर आधारित कर्म-बन्धन/कर्म-मुक्त वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण श्रीमद्भगवद्गीता के चतुर्थ अध्याय पर आधारित कर्म-बन्धन/कर्म-मुक्त वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण | S.D. Human Development, Research & Training Center
सनातन धर्म मानव विकास शोध एवम् प्रशिक्षण केन्द्र
Sanatan Dharma Human Development, Research & Training Center
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श्रीमद्भगवद्गीता के चतुर्थ अध्याय पर आधारित कर्म-बन्धन/कर्म-मुक्त वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण

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1. मैं अजन्मा हूँ। (अजो)
2. मैं अविनाशी हूँ। (सन्नव्ययात्मा)
3. साधु पुरुषों से मिलता हूँ। (साधुनाम्)
4. पाप करने वालों से नहीं मिलता। (दुष्कृताम्)
5. धर्म की स्थापना करना चाहता हूँ। (धर्मसंस्थापनार्थाय)
6. दिव्य कर्म करता हूँ। (दिव्यमेव)
7. मेरे राग भय तथा क्रोध नष्ट हो गये हैं।वीत राग
8. कर्म-फ़ल की प्राप्ति के लिए देव-पूजन करता हूँ। (यजन्त इह देवताः)
9. कर्म से मैं लिप्त नहीं होता हूँ। (न माम् कर्माणि लिम्पन्ति)
10. मुझे कर्मफ़ल में स्पृहा नहीं है। (न मे कर्मफ़ले स्पृहा)
11. कर्म में अकर्म देखता हूँ। (कर्मण्यकर्म)
12. अकर्म में कर्म देखता हूँ। (पश्येदकर्मणि च कर्म)
13. बिना कामना और संकल्प के कर्म करता हूँ। (कामसंकल्पवर्जिताः)
14. कर्मफ़ल में आसक्ति का त्याग करके कर्म करता हूँ। (त्यक्त्वा कर्मफ़लसङ्गं)
15. आशारहित होकर कर्म करता हूँ। (निराशीः)
16. केवल शरीर से कर्म करता हूँ। (शारीरम् केवलम् कर्म)
17. द्वन्द्वातीत होकर कर्म करता हूँ। (द्वन्द्वातीतः)
18. ईर्ष्या रहित होकर कर्म करता हूँ। (विमत्सरः)
19. सिद्धि-असिद्धि में सम होकर कर्म करता हूँ। (समः सिद्धौ असिद्धौ)
20. दूर हुए संग युक्त कर्म करता हूँ। (गतसंगस्य)
21. ज्ञान मे चित्त को स्थित करके कर्म करता हूँ। (ज्ञानावस्थितचेतसः)
22. यज्ञार्थ कर्म करता हूँ। (यज्ञाय आचरतः कर्म)
23. योग से त्यागे हुए कर्म करता हूँ। (योगसंन्यस्त कर्माणम्)
24. संशय रहित होकर कर्म करता हूँ। (ज्ञानसंछिन्नसंशयम्)