S.D. Human Development, Research & Training Center | श्रीमद्भगवद्गीता के अष्ट अध्याय पर आधारित तुच्छ गति/परमगति-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण श्रीमद्भगवद्गीता के अष्ट अध्याय पर आधारित तुच्छ गति/परमगति-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण | S.D. Human Development, Research & Training Center
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श्रीमद्भगवद्गीता के अष्ट अध्याय पर आधारित तुच्छ गति/परमगति-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण

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1. अन्तकाल में भगवान् को याद करता हूँ। (यं यं वापि स्मरन् भावं)
2. सब समय में ईश्वर को भजता हूँ। (सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर)
3. मन और बुद्धि ईश्वर को अर्पण कर दिया है। (मय्यर्पितमनोबुद्धि)
4. अभ्यास रुप योग से युक्त हूँ। (अभ्यासयोगयुक्तेन)
5. चित्त को दूसरी और नहीं जाने देता। (नान्यगामिना)
6. परम दिव्य पुरुष को प्राप्त करता हूँ। (दिव्यं याति)
7. अचल मन वाला हूँ। (मनसाचलेन)
8. भ्रुकुटियों के मध्य प्राण को स्थित करता हूँ। (प्राणमावेश्य सम्यक्)
9. वीतराग रहता हूँ। (वीतरागः)
10. ब्रह्मचर्य का पालन करता हूँ। (ब्रह्मचर्यं चरन्ति)
11. इन्द्रियों के सब द्वारों पर नियंत्रण रखता हूँ। (सर्व द्वाराणि संयम्य)
12. मन का ह्रदय में निरोध करता हूँ। (मनः ह्रदि)
13. अपने प्राणों को मस्तक में स्थापित कर लेता हूँ। (मूर्ध्न्याधायात्मनः)
14. योग धारणा में स्थित रहता हूँ। (योगधारणाम्)
15. ऊं अक्षर ब्रह्म का उच्चारण करता हूँ। (ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्)
16. ईश्वर का स्मरण करते हुए देह त्याग करता हूँ।
17. (यः प्रयाति त्यजन् देहं)
18. अनन्यचित्त वाला हूँ। (अनन्यचेताः)
19. अक्षर नामक अव्यक्त भाव ही परम गति है। (परमां गतिं)
20. अव्यक्त भाव को प्राप्त मनुष्य परमधाम को चला जाता है। (तद्धाम परमं)
21. अनन्य भक्ति से परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है। (भक्त्या)
22. शुक्ल पक्ष में देह त्याग होता है। (शुक्लः)
23. कृष्ण पक्ष में देह त्याग होता है। (कृष्णः)
24. देवयान मार्ग से जाने पर परम गति प्राप्त होती है। (यात्यनावृत्ति)
25. पितृमार्ग से जाने पर जन्म-मृत्यु प्राप्त होती है। (आवर्तते पुनः)
26. दोनों मार्गों को जानने वाला मोहित नहीं होता। (न..मुह्यते)
27. यज्ञ,तप दानादि का उल्लंघन करता हूँ। (अत्येति तत्सर्वमिदं)