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सनातन धर्म मानव विकास शोध एवम् प्रशिक्षण केन्द्र
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Chai Pe Charcha

discussion session on the Topic- ” हरियाणा उच्चतर शिक्षा-व्यवस्था की मीमांसा – प्राध्यापकीय दृष्टिकोण”” Critique of Higher Education System of Haryana – Teachers’ Perspective held on 1st December, 2017. SDHDRT Center of S D College (Lahore), Ambala cantt.

Discussion was initiated with an awkward question that what is the status of an ordinary teacher in the whole system of haryana higher education? Does DGHE or VC or Mgts ever ask ordinary teachers what are the changes needed in education system. What kind of students an ordinary teacher deals with? How to teach meaningfully – can it be ever decided by begged borrowed systems of biometric. Lesson plan, semester etc. Aims/ objectives displayed by HHES trashes ideas of education given and propagated by Albert Einstien to Swami Vivekananda to Gandhi etc and brings in only trained but non thinking part of industrial system only. One wonders what is the idea of human being in whole of HHES. It is suggested that DGHE, VC and other educational officials should meet only ordinary teachers regarding idea of teaching excluding issues of finance and promotion. There should be no promotions, API. A teacher opted to be teacher should remain teacher &retired as teacher. After all what promotions do? Do promotion make a better teacher? A teacher is a teacher 24×7 not for 5.30 hrs. HHES is not able to think beyond survival level questions. HHES has no vision to generate a sense of enquiry and aesthetic life values which should be the essence of Haryana education system. It is to be understood and appreciated that teaching is about knowledge with sense of enquiry and freedom and not about technology. Ordinary teacher of higher education of haryana needs space, freedom in this system instead of instructions.
Side by side questions were raised how teachers spends their 5.30hrs, what do they discuss among themselves, what are the standards of discussions, how many books a teacher reads in a month, how he/she behaves with his/ her students, are teachers looking for new ideas?

It was suggested to conduct a questionnaire based survey of ordinary teachers and a self financed seminar should be organized of ordinary teachers by ordinary teachers only.

Regards
Ashutosh Angiras

 


 

अम्‍बाला । एस डी कॉलेज के सनातन धर्म मानव विकास एवं  प्रशिक्षण केंद्र में हरियाणा उच्‍चतर शिक्षा व्‍यवस्‍था की मीमांसा- प्राध्‍यापकीय दृष्टिकोण” विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन १दिसम्बर, २०१७ को किया गया। परिचर्चा का संचालन शोध एवं प्रशिक्षण केंद्र के निदेशक डॉ आशुतोष अंगरिस ने किया, जिस में कॉलेज शिक्षाविदों प्रो०इंदिरा यादव, डॉ उमा शर्मा, डा०दिव्‍या जैन, प्रो०ज़ीनत मदान, प्रो० मीनाक्षी शर्मा, डॉ बालेश कुमार, प्रो० राजीव चन्‍द्र शर्मा इत्‍यादि के अतिरिक्‍त पंजाबी विश्‍वविद्यालय, पटियाला के विदेशी भाषा विभाग के सहायक प्रोफसर मयंक आनन्‍द, सामान्‍य अस्‍पताल, अम्‍बाला के डॉ जोगेंद्र, समाजसेवी श्री बलभद्र देव थापर, श्री अनिल मित्तल  तथा डॉ जयप्रकाश गुप्‍त आदि ने सक्रिय प्रतिभागिता की।

परिचर्चा में अध्‍यापन हेतु प्राध्‍यापकों को अध्‍यापन तकनीक तथा कालावधि चुनने की स्‍वतंत्रता देने की आवश्‍यकता पर सर्वसम्‍मति प्रकट हुई। हरियाणा में  अध्‍यापन की कार्यदशाओं और वातावरण को तनाव व दबाव मुक्‍त बनाए रखने प्रबल आवश्‍यकता अनुभव की गई। स्‍वायत्‍ता के बिना  कक्षा कक्ष में  समर्पण भाव  से अंत:प्रेरित हो कर अध्‍यापन कार्य का निष्‍पादन नहीं किया जा सकता। उपयुक्‍त वातारण उपलब्‍ध कराना शिक्षा प्रशासन का उत्तरदायित्‍व बनता है।

प्रथम जनवरी 2018 से प्रारंभ होने वाले अगले सम सत्र की दैनिक पाठ्य योजना (लैसन प्‍लैन) को 25 दिसम्‍बर तक वेबसाइट पर अपलोड करने में आने वाली कठिनाइयों पर गहन चर्चा की गई। एक तो, अभी तक 2018 की सार्वजनिक अवकाश की सूची अनुपलब्‍ध है। जिसे ध्‍यान  में रखे बिना पाठ्य- योजना का निर्माण किया ही नहीं जा सकता। दूसरे, यदि किसी प्राध्‍यापक को आकस्मिक अथवा चिकित्‍सा अवकाश लेना पड़ जाता है, तो पूर्व निर्धारित पाठ्य योजना का क्‍या होगा? क्‍या उस दिन हेतु निर्धारित अध्‍याय को छोड़ दिया जाएगा ? यदि हां, तो बहुत संभव है कि विद्यार्थियों को अगला अध्‍याय समझ ही न जाए, क्‍योंकि अगला अध्‍याय बहुत बार पहले अध्‍याय के ज्ञान पर आधारित होता है। और यदि अध्‍यापक लिए गए अवकाश वाले दिनों के अध्‍यायों से अवकाश से आने बाद अध्‍यापन आरंभ करेगा तो पूर्व निर्धारित दैनिक पाठ्य योजना खंडित हो जाएगी। ऐसी ही स्थिति सरकार द्वारा अनेकानेक कारणों वश अचानक सार्वजनिक अवकाश घोषित किए जाने पर भी उपस्थित होगी।दैनिक पाठ्य- योजना बनाई तो जा सकती है, किंतु उस का क्रियान्‍वयन असंभव होगा। इस से विद्यार्थियों का दिग्‍भ्रमित होना अवश्‍यंभावी है। किस दिन क्‍या पढ़ाना है, यह प्राध्‍यापकों पर पूर्ववत छोड़ देना ही उचित होगा।ऐसा शासनादेश प्राध्‍यापकीय स्‍वायत्‍ता में अवांछित हस्‍तक्षेप है ।

प्राध्‍यापकों के कॉलेज में आगमन व प्रस्‍थान समय की  बायोमीट्रिक उपस्थिति को लागू करने की नीति को भी व्‍यावहारिकता के धरातल पर अनुचित ठहराया गया। प्रथम दृष्‍ट्या सैद्धांतिक रूप से भले ही उपस्थिति का यह प्रमाणित तरीका प्रतीत होता है, परंतु वास्‍तव में यह  ऐसा है नहीं। इस के लिए अभी आवश्‍यक अधोसंरचना उपलब्‍ध नहीं है। अनेक बार इंटरनेट के अभाव या धीमी गति और मशीनों की बहुत कम संवेदनशीलता के कारण उंगलियों के निशान ग्रहण करने में अत्‍यधिक विलंब होता है। कई कर्मचारियों के निशान अनेक बार प्रयास करने बाद पहचाने जाते हैं। जिसमें आधे घंटे से भी अधिक समय लगता देखा गया है। इसी कॉलेज के एक गैर शैक्षणिक कर्मचारी द्वारा डेढ़ सौ बार प्रयास करने पर उपस्थिति दर्ज करने में सफलता नहीं मिली। कुछ एक कर्मियों द्वारा आधार केंद्रों पर जा कर अपनी जैविक पहचान को अद्यतन कराने पर भी उपस्थिति लगाने में कठिनाई दूर नहीं हुई। कुछ एक कर्मचारियों की उंगलियों के निशानों की छवियों को अद्यतन करने वाली मशीनों ने अद्यतन करने में अक्षमता दर्शायी है। ऐसी परिस्थितियों में आधार आधारित जैविक उपस्थिति को प्रमाणिक उपस्थिति की सूचक कतई नहीं माना जा सकता । अतएव, उच्‍चतर शिक्षा निदेशालय हरियाणा को यथार्थ को ध्यान में रखते हुए बायोमीट्रिक उपस्थिति की अविश्‍वसनीयता के के कारण तत्‍काल प्रभाव से  इस व्‍यवस्‍था को वापिस ले लेना चाहिए।

अकादमिक निष्‍पादन सूचकांक (एपीआई) को प्राध्‍यापकों और अध्‍यापन में एक अवरोधक समझा गया। इस सूचकांक में अंक जोड़ने के चक्‍कर में प्राध्‍यापक अपने मूल उद्देश्‍य से भटक से गए प्रतीत होते हैं। वे ऐसे किसी भी कार्य से बचते हैं जो अकादमिक सूचकांक में योगदान न देता हो। इस से शोधपत्रों, संगोष्ठियों और सम्‍मेलनों के स्‍तर में गिरावट आई है।  वास्‍तविक कार्य निष्‍पादन की बजाए दिखावे को प्रोत्‍साहन मिला है। इस का प्रमाण है, जो संगोष्‍ठी या सम्‍मेलन उच्‍चतर शिक्षा निदेशालय हरियाणा या विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रायोजित नहीं होती उसमें प्राध्‍यापकों की उपस्थिति नगण्‍य होती है,क्‍योंकि उसमें प्रतिभागिता या उपस्थिति के अंक हरियाणा में प्राध्‍यापकों के निष्‍पादन सूचकांक में नहीं जुड़ते। ज्ञान प्राप्ति की संस्कार प्रक्रिया अर्थात् गुणग्रहण एवं दोषापनयन में करने का एक प्रमुख माध्‍यम पुस्‍तकों का अध्‍ययन होता है। एक वर्ष में किसी प्राध्‍यपक ने कितनी नई पुस्‍तकों का स्‍वयं अध्‍ययन किया? इसे सूचकांक की गणना में कोई भार नहीं दिया गया। अध्‍ययन के बाद लिखित पुस्‍तक समीक्षा को पर्याप्‍त भार दिया जाना चाहिए था। वैसे तो अकादमिक निष्‍पादन सूचकांक की अनुपोयगिता के कारण ही तामिलनाडु में प्राध्‍यापकों की प्रोन्‍नति में सूचकांक को मूल्‍यांकन का पैमाना माना ही नहीं गया था। सुविज्ञ-सूत्रों के आधार पर डॉ बालेश ने बताया कि उत्‍तर प्रदेश में भी प्रोन्‍नति के मामले सूचकांक के पैमाने को निरस्‍त कर दिया गया है। अब, राज्‍य में उभरते दिखावे और औपचारिकता से मुक्ति तथा अकादमिक गुणवत्‍ता को वास्‍तव में स्तरीय स्थिरता प्रदान करने हेतु निष्‍पादन सूचकांक के निरस्‍तीकरण पर विचार किया जाना वांछनीय है। निदेशक व संचालक डॉ आशुतोष अंगिरस के अनुसार तो प्राध्‍यापक सेवा में प्रवेश से ले कर निवृत्ति तक प्राध्‍यापक ही रहना चाहिए। प्रोन्‍नति के सोपान – सहायक प्रोफेसर, सह-प्रोफेसर व प्रोफेसर इत्‍यादि अवांछनीय हैं। किंतु अन्‍य प्रतिभागियों की उनकी इस उदारता के प्रति मौन असहमति की मुख-मुद्रा का भी स्‍पष्‍ट अवलोकन हुआ।

शिक्षा के उद्देश्‍य पर विचार विमर्श के दौरान बहुआयामी मानव विकास पर सहमति दृष्टिगोचर हुई। जहां एक ओर शिक्षा को ज्ञान, कौशल और उद्यमिता का विकास करते हुए व्‍यक्ति को आजीविकोपार्जन में सक्षम बनाना होगा, वहीं दूसरी ओर सामाजिक उत्‍तरदायित्‍व तथा मानवीय संवेदनशीलता को अंकुरित करने का कार्य भी  करना होगा। किसी भी विषय में शिक्षित व्‍यक्ति संवेदनहीन नहीं होना चाहिए।इसलिए विज्ञान व प्रौ़द्योगिकी के विद्यार्थियों हेतु साहित्‍य, समाजशास्‍त्र या मनोविज्ञान जैसा समाज व व्‍यवहार-विज्ञान व मानविकी का कोई एक विषय अनिवार्य होना चाहिए। विमर्श में अंत:अनुशासन संवाद का अभाव भी परिलक्षित हुआ। हरियाणा में चयन आधारित क्रेडित अध्‍ययन पद्धति को लागू कर कुछ सीमा तक समस्‍या समाधान की दिशा में पहल की जा सकती है। इसके साथ ही उच्‍चतर शिक्षा के स्‍तर पर  विभिन्‍न विषयों में अंत:अनुशासित शोध प्रकल्‍पों को प्रोत्‍साहित करने की आवश्‍यकता को भी रेखांकित किया गया। समन्वित मानव संसाधन विकास हेतु अंत:विषयक संवाद की संभावनाओं को खोज कर राज्‍य स्‍तर स्‍थापित करना होगा।

परिचर्चा में टयूटोरियल की कमी भी अनुभव की गई। बड़ी कक्षाओं को छोटे समूहों में विभाजित कर अध्‍यापकों द्वारा विद्यार्थियों का दिशानिर्देशन और समस्‍या समाधान का प्रावधान किया जाना चाहिए ।

सम्‍प्रेषण कौशल, भाषाओं पर अधिकार और मानव व्‍यवहार पर विशेष बल देने की व्‍यवस्‍था करनी होगी। इन गुणों हेतु अंग्रेजी के एक प्रचलित आधुनिक शब्‍द सॉफ्ट-स्किल्‍स का प्रयोग किया जा सकता है। कक्षा कक्षों में विद्यार्थियों के प्रति व्‍यवहार के संदर्भ में प्राध्‍यापकों को भी प्रशिक्षित किए जाने की आवश्‍यकता है। विद्यार्थियों में सकारात्‍मक अभिप्रेरणा जागृत करने हेतु सभी विषयों के प्राध्‍यापकों में सॉफ्ट-स्किल्‍स के विकास की बेहद आवश्‍यकता अनुभूत की गई। इस उद्देश्‍य के लिए औपचारिक प्रशिक्षण व विकास का प्रावधान शिक्षा व्‍यवस्‍था तथा विद्यार्थियों हेतु हितकर होगा।

उच्‍चतर शिक्षा की आधार विद्यालयीन शिक्षा होती है। विद्यालयीन शिक्षा उच्‍चतर शिक्षा को विद्यार्थियों की आपूर्ति करती है। उच्‍चतर शिक्षा में लगभग परिपक्‍व हो कर ही विद्यार्थी प्रवेश लेते हैं। विद्यालयीन स्‍तरीय पर्याप्‍त स्‍तरीय ज्ञान के अभाव में विद्यार्थीगण उच्‍चतर शिक्षा के स्‍तर पर तालमेल न बैठा पाने के कारण पिछड़ जाते हैं। अनेक निजी और सरकारी विद्यालयों में चुनिंदा प्रश्‍नोत्‍तर रट्टा (स्‍मरण)  कर परीक्षा में उच्‍चांक प्राप्ति की शिक्षा विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि से परीक्षा में उच्‍चांक तो प्राप्‍त हो जाते हैं, परंतु विषय की समझ विकसित नहीं होती । ऐसे विद्यार्थी प्राय: महाविद्यालयों में पिछड़ जाते हैं। अतएव, विद्यालयीन शिक्षा में सुधार व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव में उच्चतर शिक्षा अपना उद्देश्‍य हासिल नहीं कर  सकती।

 

विवरणिका – लेखक

राजीव चन्‍द्र शर्मा, सह-प्रोफेसर:कार्यालयप्रबंधन, विभागाध्‍यक्ष: वाणिज्‍य एवं प्रबंधन, एस डी कॉलेज (लाहौर),अम्‍बाला छावनी।

एवम् आशुतोष आंगिरस द्वारा सम्पादित

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