कुम्भ के मेले में बड़ी चहल-पहल थी । ऐसा लगता मानो सबके मन में आस्था का दीप जला हो । कुछ युवा दम्पती अपने बूढ़े माता-पिता को बड़े ही आदर भाव से स्नान करा रहे थे। इसी मेले में अमित और माधुरी अपने पुत्र दिव्य,वधू प्रभा और देवयानी पोती के साथ आए हुए थे। दिव्य अपने पिता को स्नान कराकर, उनकी मनचाही वस्तुएँ दिला रहा था, दादी और पोती को प्रभा ने संभाला हुआ था। तभी देवयानी ने खिलौने लेने की जिद की, प्रभा ने उसे बहुत सारे खिलौने दिला दिए। “दादी ! दादी ! आप भी कुछ ले लो’’, देवयानी बोली। “ हाँ मुझे एक माला और रामकथा की पुस्तक मिल जाती बस, हल्के से स्वर में बोली माधुरी’’।
“ माँ जी! माँ जी!चिन्ता न करो, देवयानी को पकड़ो जरा, मैं आपके लिए माला, पुस्तकादि लाती हूँ, प्रभा कहने लगी”। “ अरे आज तो तेरी मम्मी बड़ी ही दयालु हो रही है’’, ऐसा कहते हुए गोद में बैठी देवयानी को सहलाने लगी । तभी दौड़ी दौड़ी प्रभा माला, पुस्तक,धूप-दीप-फूल सब लेकर आई।“ लो माँ जी आप और पिता जी यहीं बैठ कर पूजा कर लो”, वधू बोली । “ मैं यूँ ही अपनी बहू को बुरा मानती हूँ, यह तो बड़ी ही अच्छी है”, ऐसा माधुरी मन में सोचने लगी । तभी अमित बोले, “ माधुरी ! हम अपने बच्चों के बारे में यूँ ही उल्टा-सीधा सोचते रहते हैं, ये दोनों तो बडे ही अच्छे हैं या फिर यह पवित्र नगरी हरिद्वार का असर है।’’“ नहीं नहीं हमारे बच्चे अच्छे हैं, बहुत अच्छे हैं,” माधुरी ने बहुत ही खुश होकर कहा । देवयानी अपने खिलौनों में मस्त थी । तभी प्रभा बोली , दिव्य ! सुनो ये दोनों तो राम ध्यान में मग्न हैं, इनको यहीं छोड़ देते हैं”। हाँ हाँ तुम ठीक कहती हो , घर जाकर आस- पड़ोस, रिश्तेदारों को कह देंगें कि दोनों बिछुड़ गए हमसे, भीड़ में बहुत खोजा , पर मिले नहीं । माता-पिता ने अपनी औलाद की बातें सुन ली, आँखें खोलने का मन नहीं किया, जुबाँ पर ताला जड़ गया हो, शरीर मानो जड़वत् हो गया हो , सोचने लगे धरती फट जाए, उसमें समा जाएँ या गंगाअपनी आगोश में भर ले । “ देवयानी ! देवयानी ! झूला झूलेगी,”प्रभा और दिव्य एक साथ बोले । “ हाँ पापा, चलो चलो”, देवयानी ने कहा। हाँ जल्दी जल्दी चलो”, प्रभा बोली । दादा-दादी भी तो झूलेंगें , मैं उनकी गोद में बैठकर झूला झूलूँगी”, देवयानी जिद्द करने लगी । “ ओहो वे दोनों ध्यान में बैठें हैं , डिस्टर्ब मत कर उन्हें”, थोड़ा डाँटते हुए अमित ने कहा। प्रभा ने देवयानी का हाथ पकड़ा और ले चली , देवयानी रो रही थी , पीछे मुड़ -मुड़ कर दादा-दादी को देख रही थी । दादा-दादी के कानों में देवयानी की आवाज़ गूंज रही थी । जब उन्हें अहसास हो गया कि वे सभी दूर निकल गए, तब दादा-दादी ने आँखें खोली और नम आँखों से एक -दूसरे को देखा । एक लम्बी चुप्पी के बाद आह भरते हुए माधुरी बोली, “ क्या यही सन्तान होती है !”“ माधुरी ! इससे तो निस्सन्तान होना अच्छा था, बड़ी ही व्याकुल नज़र से माधुरी को देखते हुए अमित बोले ।
क्रमश:
डॉ.उमा शर्मा
एसोसिएट प्रोफेसर
संस्कृत-विभाग
एस. डी. कालेज
अम्बाला कैंट