- यथा धेनुसहस्त्रेषु वत्सो विन्दति मातरम्।
तथा पूर्वकॄतं कर्म कर्तारमनुगच्छत्॥
A calf recognizes its mother among thousands of cows; similarly, previous deeds go with the doer.जिस प्रकार एक बछड़ा हजार गायों के बीच में अपनी माँ को पहचान लेता है, उसी प्रकार पूर्व में किये गए कर्म कर्ता का अनुसरण करते हैं |
- अकॄत्यं नैव कर्तव्य प्राणत्यागेऽपि संस्थिते।
न च कॄत्यं परित्याज्यम् एष धर्म: सनातन:॥One must not be act improperly even at the cost of life. And the duty must be performed. This is eternal religion.
न करने योग्य कार्य को प्राण जाने की परिस्थिति में भी नहीं करना चाहिए और कर्त्तव्य का कभी त्याग नहीं करना चाहिए, यह सनातन धर्म है।
- गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् ।
वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः॥
One should not mourn over the past and should not remain worried about the future. The wise operate in present.बीते हुए समय का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के लिए परेशान नहीं होना चाहिए, बुद्धिमान तो वर्तमान में ही कार्य करते हैं |