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An Undertaking of S.D.College (Lahore) Ambala Cantt

दिनांक 21 अप्रैल 2018, वेदव्यास संस्कृत की पुनःसंरचना योजना के अधीन, सनातन धर्म मानव विकास शोध एव प्रशिक्षण केन्द्र एवं संस्कृत विभाग, सनातन धर्म कालेज, अम्बाला छावनी द्वारा “ पृथिवी-दिवस” के उपलक्ष्य में “हिन्दी, पंजाबी तथा आंग्ल साहित्य में पार्थिव-चेतना का स्पष्टीकरण (हिमाद्रि कृत उपाकर्म-संकल्प एवं पृथ्वी-सूक्त के सन्दर्भ में)” विषय पर एक विद्वद्चर्चा का आयोजन किया गया। विद्वद्चर्चा में कालेज के छात्रों के साथ-साथ विभिन्न महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के विद्वान उपस्थित रहें, जिनमें डॉ. श्यामनाथ झा, डॉ. संजय कुमार शर्मा, डॉ. बी. एल. सेठी, डॉ. जोगिन्द्र सिंह, श्री बलभद्र देव थापर और अनिल मित्तल आदि अन्य वक्ताओं ने भाग लिया । डॉ. संजय शर्मा (रजिस्ट्रार, वाई एम सी यूनिवर्सिटी, फरीदाबाद)ने कहा कि मानव जीवन प्रकृति से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। मनुष्य का कल्याण प्रकृति पर निर्भर है। अतः प्रकृति सदा हमारे अनुकुल बनी रहे, यही भावना वेद मन्त्रों में दिखलाई देती है। अथर्ववेद के पृथ्वी-सूक्त के 63 मन्त्रों में मातृस्वरूपिणी भूमि को सभी पार्थिव पदार्थों की जननी और पोषिका के रूप में महिमा वर्णित की गई है। अथर्ववेद का यह मन्त्र “माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः” का जयघोष देशभक्ति तथा विश्वबन्धुत्व की प्रेरणा बनकर जन-जन में सदैव उत्साह और उल्लास का संचार करता है। इस सूक्त में पृथ्वी के स्वरूुप, रंग और उसके गुणों की चर्चा की गई है। पृथ्वी की उर्वरक, सृजन और धारण शक्ति इतनी प्रबल है कि यह उस पर निवास करने वाले मनुष्यों के मन में सृजनात्मकता की भावना का संचार करती है। चर्चा में डॉ. गौरव शर्मा ने कहा कि पृथ्वी सूक्त भाषा तथा भाव की दृष्टि से नितान्त उदात्त, भावप्रवण तथा सरस है, जो राष्ट्रप्रेम, मानवप्रेम, जीवप्रेम तथा भव्य-भावुकता के सुन्दर संमिश्रण को दर्शाता है। चर्चा में बलभद्र देव थापर ने पृथ्वी को प्रदूषण मुक्त कर एक स्वच्छ वातावरण निर्माण पर बल दिया । अनिल मित्तल ने जैविक कृषि के माध्यम से मानव समाज में फैली विभिन्न रोगों के समाधान का मार्ग बताया । कार्यक्रम के अन्त में प्रिंस, आशीष तथा अन्य छात्रों द्वारा पृथ्वी-सूक्त का पाठ किया ।
सादर
आशुतोष आंगिरस