1) One Day interdisciplinary National workshop on “CRITIQUE OF AMBIGUITY IN SANSKRIT SHAASTRAAS & ARTIFICIAL INTELLIGENCE /MACHINE TRANSLATION”
Organized by – Departments of Sanskrit, Computer Science, Zoology, Electronics, Hindi, Punjabi, Mass Communication,
Academic Support- D.A.V College, Pehowa, SD Adarsh Sanskrit College, Ambala Cantt, Maharaja Aggarsain College, Jagadhari, Indira Gandhi National College, Ladwa, Hindu College, Amritsar, Vedic Research Center, Kanya Mahavidyala, Jallandher
Date – 10th MARCH, 2018, SATURDAY, Time – 09.30 a.m.
Place – Seminar Hall, S. D. College (Lahore), Ambala Cantt.
One Day Interdisciplinary National Workshop Schedule | |
Registration– 09:30 a.m. to 10:00 a.m | |
1st Resource person – Prof. (Dr.) Subhash Chandra, Department of Sanskrit, University of Delhi, Delhi.
2nd Resource Person – Dr. Girish Nath Jha, Professor of Computational Linguistics & Dean, School of Sanskrit and Indic Studies, Jawaharlal Nehru University, New Delhi-110067
3rd Resource person – Dr. Rakesh Kumar, Principal, Sachdeva Engineering College for Girls, Chandigarh-Ludhiana Highway, Gharuan Kharar, Distt- Mohali-140301.
4th Resource person – Prof. (Dr.) Rakesh Kumar, Chairperson, Department of Computer Science and Applications, Kurukshetra University, Kurukshetra. |
1st Guest of Honor- Prof. (Dr.) Surinder Mohan Mishr, Advisor, Prof. Gopika Mohan Bhattacharya Shodha Parishad, Department of Sanskrit, Kurukshetra University, Kurukshetra.
2nd Guest of Honor- Prof. (Dr.) Dr. Dalbir Singh, Head, Department of Sanskrit, Guru Nanak Dev University, Amritsar.
3rd Guest of Honor- Dr. Kamdev Jha, Principal, DAV College, Pehowa.
4th Guest of Honor- Dr. Vishnu Dutt, Principal, S.D. Adarsh Sanskrit College, Ambala Cantt. |
2) CONTRIBUTIONS OF BAIRAGI SECT TO INDIAN HISTORY, CULTURE & LITERATURE [Part-2]
दिनाङ्क – 31 मार्च, 2018, शनिवार, स्थान –सेमिनार हाल, सनातन धर्म कालेज, अम्बाला छावनी ।
अकादमिक समर्थन– सनातन धर्म आदर्श संस्कृत कालेज, अम्बाला छावनी । हिन्दू कालेज, अमृतसर । डी०ए०वी० कालेज, पिहोवा । महाराजा अग्रसेन कालेज, जगाधरी । इन्दिरा गाँधी नेशनल कालेज, लाडवा । डी०ए०वी० कालेज, नन्योला । राष्ट्रभाषा विचार मञ्च, अम्बाला । नेशनल अवेयरनेस फ़ोरम, अम्बाला ।
आयोजक विभाग – संस्कृत, हिन्दी, पञ्जाबी, इतिहास, संगीत ( गायन, वादन), मास कम्युनिकेशन, एन०सी०सी०
मान्यवर,
उपर्युक्त विषय पर सम्वाद करने के लिए आप अपने विचार, मान्यता एवम् दृष्टि सहित सादर आमन्त्रित हैं।
भारतीय इतिहास, परम्परा, संस्कृति और साहित्य में बैरागी सम्प्रदाय को जो स्थान मिलना अपेक्षित था वह उसे नहीं मिला है और न ही दिया गया है। विशेष रूप से पञ्जाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश के प्रादेशिक इतिहासों में बैरागी सम्प्रदाय को न्यायोचित स्थान दिया जाना चाहिए था, वह नहीं दिया गया। उनके योगदान की चर्चा प्रादेशिक इतिहासकार क्यों नहीं कर रहे – यह प्रश्न अवश्य उनसे किया जाना चाहिए । पञ्जाब , हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश आदि में बैरागी मठों, अखाड़ों आदि भूमिका कितनी महत्त्वपूर्ण रही है – यह बैरागियों के द्वारा किए गए बलिदानों एवम् सामाजिक कार्यों से मूल्यांकित अवश्य किया जाना चाहिए। बैरागी सम्प्रदाय की विशिष्टता इस तथ्य में भी निहित है कि वे पहले ऐसे लोग हैं जिन्होने भक्ति के साथ शक्ति का समन्वयन किया और “सन्यासी- योद्धा” या “सन्त-सिपाही” को मूर्त रूप प्रदान किया। राम को केन्द्र में प्रतिष्ठित करके हनुमान के बल से प्रेरणा ले कर जो बैरागी दर्शन की अवधारणा को स्थापित कर तदनुकूल व्यवहार का प्रदर्शन किया, वह सराहनीय है और उसने परवर्ती भक्ति-दर्शनों को न केवल प्रभावित ही किया बल्कि उनकी सशक्त पृष्ठभूमि भी तैयार की। इसलिए इस संगोष्ठी का आयोजन अपने औचित्य को स्वयं सिद्ध करता है।
यह संसार अपनी विषमताओं के कारण एक विचित्र परिदृश्य बना रहा है। इसमें कोई सबल है तो कोई निर्बल है । इसका कारण अभी तक अज्ञात है। प्रकृति के क्षेत्र में तो यही समाधान है कि निर्बल सबल का भोजन बनने के लिए ही उत्पन्न हुआ है। मनुष्यता के क्षेत्र में कर्मों का शुभ-अशुभ होना ही इस विषमता का कारण है। वैष्णव भक्ति के सन्दर्भ में भगवद्भाव की विस्मृति ही इसका मूल कारण है। वैष्णव भक्ति ने इस विस्मृति को ध्रुवा या अटल स्मृति के द्वारा निवारण कर लोक में धर्मस्थापना का व्रत धारा कर सबल और निर्बल के द्वन्द्व का न्यायसंगत समाधान पहली बार वाल्मीकि रामायण में, दूसरी बार रामचरितमानस में उपस्थापित किया । प्रश्न दूसरी बार भी वही था कि- “जब-जब होई धर्म की हानि । बाढ़ई अधम असुर अभिमानी”
तब ऐसी स्थिति में भगवान् स्वयम् अवतरित होने से पूर्व अपनी धर्मरूपता का समावेश अपने भक्तजन में समाविष्ट कर देते हैं। भारतीय इतिहास की मध्यकालीन धर्मसाधना में यही समावेश जगद्गुरू रामानन्दाचार्य में अवतरित होकर वैरागी बाबाओं के रूप में सारे भारत में फैल गया । “लक्ष्य एक ही था सबल का अहंकार टूटे और निर्बल की कायरता”।
इस नूतन दृष्टि के प्रसार का कारण राम-कथा का वह सूत्र था जो पहले से ही भारतीय लोकचेतना के मानस में अनुप्रविष्ट था। वह धागा इतना विस्तृत था जो भारत की सारी पुरातन धर्म-साधनाओं के सारांश ग्रहण के साथ-साथ वर्तमान की अपेक्षाओं के अनुकूल भी था। यही कारण था कि दक्षिण से लेकर संपूर्ण भारत में जो राष्ट्र के नवजागरण का आन्दोलन छिड़ गया वह वैष्णव भक्ति के अन्य संप्रदायों से इस दृष्टि से भिन्न था कि उसमें असहाय दीनता का भगवद्भक्ति में स्थान बहुत कम हो गया और महावीर मारुति की सहृदयताजन्य दीनता और करुणा का महत्त्व अधिक हो गया । इन्हीं कारणों से रामावत-वैष्णव भक्ति ने पश्चिमी भारत में शिवाजी को, पंजाब में सिख-परम्परा के जुझारु संघर्ष को और गुजरात में गांधीवादी रामराज्य के आदर्श को जन्म दिया जो सारे भारत-जन का गौरव बन गए । इन सभी पूर्वोक्त आन्दोलनों की समूची मानसिकता का तात्त्विक विश्लेषण करें तो सर्वत्र रामानन्दी वैरागी को पीछे खड़ा पाएंगें । अपने समाज के अन्तर्वर्ती संघर्ष में जातिवाद के मिथ्या अंहकार से जूझता हुआ वैरागी वैष्णव सत्तामद से पगलाए बादशाहों, रजवाड़ो और विदेशी शासकों के अत्याचार, अनाचार का सबसे अधिक मुखर विरोध करता हुआ दृष्टिगत होता है- इसका पता पाने के लिए इतिहास की वर्तमान प्रणाली से परे हटकर देखने की आवश्यकता है।
[संगोष्ठी समन्वयक अप्रतिबद्ध एवम् निस्संकोच रूप से उपर्युक्त अवधारणा के सार-लेख के लिए प्रो० रमाकान्त आंगिरस, पूर्व अध्यक्ष, कालिदास पीठ, संस्कृत विभाग, पञ्जाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता है।
विशेष – १. कृपया समय का सम्मान करें ताकि चर्चा के लिए पर्याप्त समय दिया जा सके। २. अपने आने की पूर्व सूचना प्रदान करें। ३. उचित शोध लेखों को प्रकाशित किया जाएगा अतः उसे टाईप करवा कर ई-मेल पर प्रेषित करें। ४. किसी प्रकार का यात्रा-भत्ता देय नहीं है।
Ashutosh Angiras Dr. Rajinder Singh
convener Principal & Patron
09464558667 09466596782
-परामर्श मण्डल-
डॉ. सुरेन्द्र मोहन मिश्र, परामर्शक, प्रो० गोपिका मोहन भट्टाचार्य, शोध परिषद्, संस्कृत विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र ।
डॉ. दलबीर सिंह, अध्यक्ष, संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर ।
डॉ. वीरेन्द्र कुमार, इन्चार्ज, संस्कृत एवं पालि विभाग, पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला ।
डॉ. आदित्य, अध्यक्ष, वी.वी.बी.आई एण्ड आई.एस, साधु आश्रम, होशियारपुर।
डॉ. कामदेव झा, प्रिंसीपल, डी.ए.वी. महाविद्यालय, पिहोवा ।
डॉ. प्रमोद वाजपेयी, प्रिंसीपल, महाराजा अग्रसेन महाविद्यालय, यमुनानगर ।
डॉ. हरिप्रकाश, प्रिंसीपल, इन्दिरा गांधी नैशनल कालेज, लाड़वा ।
डॉ. विष्णु दत्त, प्रिंसीपल, सनातन धर्म आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, अम्बाला छावनी ।
आयोजक एवं स्वागत समिति
डॉ. उमा शर्मा, संस्कृत विभाग, डॉ. विजय शर्मा, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, डॉ. प्रेम सिंह, भौतिकी विभाग, डॉ. नीतू बाला, अंग्रेजी विभाग, डॉ. सरयू शर्मा, हिन्दी विभाग, डॉ. बलेश कुमार, पुस्तकालयाध्यक्ष, डॉ. निरवैर सिंह, अध्यक्ष, पंजाबी विभाग, डॉ. मीनाक्षी शर्मा, कम्प्यूटर-विज्ञान विभाग, डॉ. अंजु शर्मा, हिन्दी विभाग, डॉ. पीयूष अग्रवाल, संस्कृत अध्यापक, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, चण्डीगढ़, डॉ. गौरव शर्मा, रिसर्च फैलो, डॉ. लीना गोयल, हिन्दी विभाग, डॉ. जितेन्द्र कुमार, मॉस कम्यूनिकेशन विभाग, डॉ. मुकेश शर्मा, संस्कृत विभाग, डी.ए.वी. कालेज फॉर गर्ल्स, यमुनानगर, डॉ. अक्षय मिश्रा, अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, डी.ए.वी. कालेज, नन्यौला, डॉ. अमिता, संस्कृत विभाग, गुरुनानक गर्ल्स कालेज, यमुनानगर, डॉ. अनुभा जैन, संस्कृत विभाग, गुरुनानक गर्ल्स कालेज, यमुनानगर, डॉ. विशाल भारद्वाज, अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, हिन्दु कालेज, अमृतसर, डॉ. राजेन्द्रा, अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, जी.एम.एन.कालेज, अम्बाला कैंट, डॉ. नीरज, अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, कन्या महाविद्यालय, जलंधर, डॉ. रितु तलवार, संस्कृत विभाग, डी.ए.वी. कालेज, जलंधर सिटी, डॉ. विनोद कुमार, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, लवली प्रोफैशनल विश्वविद्यालय, फगवाड़ा, पंजाब, श्री बलभद्र देव थापर, नेशनल अवेयरनैस फोरम, अम्बाला, डॉ. जय प्रकाश गुप्त, राष्ट्र भाषा विचार मंच, अम्बाला ।