वेदव्यास संस्कृत की पुनःसंरचना योजना के अधीन, संस्कृत विभाग एवम् स० ध० मा० वि० शो० एवम् प्र० केन्द्र [स० ध० कालेज (लाहौर) अम्बाला छावनी का उपक्रम] द्वारा “What Dies When We Die & Decoding Death Rituals”“हमारे मरने पर मरता क्या है एवम् मृत्यु संस्कार/ कर्मकाण्ड का निष्कूटन” विषय परआयोजित परिचर्चा में प्रो० राजीव चन्द्र शर्मा, डा० जोगेन्द्र सिंह, डा० जयप्रकाश गुप्त, श्री अनिल मित्तल, श्री बी डी थापर, प्रो०मीनाक्षी, श्री नवनीत, श्री मनीष तथा अन्य छात्रों ने विचार अभिव्यक्त व्यक्त करते हुए कई तरह के प्रश्नों पर विचार किया कि शरीर किस तत्त्व के अभाव कारण मरता है, मृत्यु को परिभाषित कैसे किया जाए, किसी अन्य व्यक्ति की घटित हो रही मृत्यु के समय अन्य जीवित व्यक्तियों के अनुभव क्या रहे, मृत्यु के पश्चात क्या होता है, क्या पुनर्जन्म होता है और साथ ही साथ आत्मा, सोल, चेतना, आदि शब्दों पर भी विचार किया गया लेकिन अस्पष्टता बनी रही? “मृत्युञ्जय मन्त्र और मृत्युर्मा अमृतं गमय” आदि मन्त्रों में मृत्यु की अवधारणा/ अर्थ को समझने का भी प्रयास करते हुए मृत्यु सम्बन्धी कर्मकाण्ड के सामजिक मनोविज्ञान को भी विश्लेषित किया गया। डा० ब्रायन वीज़ की दो पुस्तकों को पुनर्जन्म के सन्दर्भ मे उद्धृत किया गया।
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सादर
आशुतोष आंगिरस